राजनीती
'जय श्रीराम' के नारों से ममता को चिढ़ना नहीं चाहिए, उल्टे उनके सुर में सुर मिलातीं तो दांव उलटा पड़ जाता : शिवसेना

मुंबई। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों से पहले वहां की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ती जा रही है। सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के लिए भाजपा बढ़ी मुसीबत बनती जा रही है। भाजपा ने सत्ताधारी पार्टी कें सेंध लगाना शुरू कर दिया है, जिसके बाद एक के बाद एक टीएमसी के नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। वहीं, शुक्रवार को नेताजी सुभाष बोस की 125वीं जयंती पर दोनों पार्टियों ने शक्ति प्रदर्शन किया।
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इसी दौरान सरकारी कार्यक्रम में पीएम मोदी के मंच पर उपस्थिति के दौरान सीएम ममता बनर्जी अपना वक्तव्य देने की लिए खड़ी हुईं तब उपस्थित भीड़ ने 'जय श्रीराम' के नारे लगाए। इसको लेकर मममा बनर्जी भड़क गईं और उन्होंने भाषण देने से मना कर दिया। इसे लेकर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में उन्हें सलाह दी है। शिवसेना ने लिखा, 'हमारा विचार है कि 'जय श्रीराम' के नारों से ममता को चिढ़ना नहीं चाहिए।
उल्टे उनके सुर में सुर मिलाया होता तो दांव उलटा भी पड़ सकता था। लेकिन हर कोई अपने वोट बैंक को ध्यान में रखता है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को हराना ही है और पश्चिम बंगाल में भाजपा का विजय ध्वज लहराने की जिद से भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व बंगाल के मैदान में उतरा है। टैगोर की तरह दाढ़ी बढ़ा चुके प्रधानमंत्री मोदी भी कल कोलकाता आए थे।'
इसके साथ ही शिवसेना का कहना है कि ममता बनर्जी की आवाज लोगों तक नहीं पहुंच रही है। पार्टी ने सामना में लिखा, 'पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के पहले दुर्गा पूजा और विसर्जन को लेकर भाजपा ने झूठ प्रचारित किया और ममता बनर्जी के सीएम रहने के बावजूद उनकी आवाज लोगों तक नहीं पहुंच रही थी। भाजपा के प्रचार का गुप्त मिशन होता है।
ममता और अन्य लोगों की बात खुले मन की होती है। लोकसभा में भाजपा ने 14 सीटें जीतीं। यह बात ममता दीदी के लिए चिंताजनक है। लेकिन बंगाल की यह बाघिन सड़कों पर लड़नेवाली है और वह लड़ती रहेगी।'
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