कोयला कैसे बनता है ? जानिए जो कोयले इस्तेमाल होते हैं वह कितने पुराने हैं
भारत में अभी भी ऊर्जा कंपनियां बिजली बनाने के लिए मुख्य तौर पर कोयले पर ही निर्भर हैं।यह जीवाश्म ईंधन है, इसलिए इनकी मात्रा लगातार घटती जा रही है।
यह पृथ्वी पर सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा की तरह असीमित नहीं हैं।
कोयला तब बनता है जब पौधे दलदली जमीन में दबकर, जमकर और गर्मी की वजह से चट्टानों में बदल जाते हैं।
कोयले में बीते जमाने की पूरी लाइफ-हिस्ट्री मिलती है।
केंटकी यूनिवर्सिटी के एक पेट्रोलॉजिस्ट जेम्स होवर ने बताया, 'मूल रूप से कोयला जीवाश्म बन चुके पौधे हैं।
कोयले में पराग, पत्तियों, जड़ों और यहां तक कि कीड़ों के मल तक के निशान मिलते हैं।
कोयला निर्माण एक लंबी प्रक्रिया है लेकिन, पहाड़ी ढलानों के पौधे या मरुस्थल में जो पौधे होते हैं, उनसे कोयला निर्माण की संभावना नहीं के बराबर होती है, जबतक कि उन्हें भी दलदली जमीन ना मिल जाए।
क्योंकि, उनके लिए वह उपयुक्त जलवायु नहीं है।
'कोयले की हर परत में हजारों वर्षों का इतिहास दबा है' नरम कोयला (peat)का भी अपना एक लंबा इतिहास है।यह कीड़ों, फंगी, बैक्टीरिया का घर बन जाता है।
कोयला 30 करोड़ वर्ष से लेकर 6 करोड़ वर्ष तक पुराने हैं।कोयले के ठोस बनने में दबाव का बहुत ही बड़ा रोल है।
कोयले से कितनी ऊष्मा पैदा होती है या ऑक्सीजन और हाइड्रोजन निकलता है, यह निर्भर करता है पौधे में मौजूद कार्बोहाइड्रेट या सेल्युलोज जैसी चीजों पर।
कोयला प्राकृतिक गैस की तुलना में प्रति किलोवॉट घंटा दोगुना कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करता है।
पवन ऊर्जा की बात करें तो उसके मुकाबले यह (कोयला) 90 गुना ज्यादा Co2 उत्पादित करता है।
By Anjan Kumar Chaudhary Oneindia
source: oneindia.com
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